बातूनी राजा और कछुवे की कहानी

बातूनी राजा और कछुवे की कहानी बड़ी शिक्षाप्रद कहानी है। पुरानी बात है, बनारस में ब्रह्मदत्त नामक राजा राज करते थे ।राजा ब्रह्मदत्त राजा का राज्य बहुत समृद्ध था उसके राज्य में किसी को कोई तकलीफ नहीं थी । जनता भी बड़े आराम से अपना जीवन बिता रही है । ब्रह्मदत्त में एक ही दुर्गुण था कि वह बहुत बोलता था । इतना ज्यादा बोलता था कि मंत्री,सैनिक और प्रजा सभी पक चुके थे । अपने आस पास के राज्यों के राजाओं से अच्छे संबंध होने के बाद भी अपनी प्रशंसा और अत्यधिक बातूनी होने के कारण किसी न किसी बात पर अनबन हो जाती थी । बातूनी राजा के बोलने की आदत से अनावशक विवाद होने की आशंका बनी रहती थी,राजा की इस बात से सभी चिंतित थे ।

राजा का सबसे बुद्धिमान मंत्री, जिनका नाम बोधिसत्व था । राज्य के सभी मंत्री बोधिसत्व की बुद्धिमानी से परिचित थे इसलिए सब ने उनसे आग्रह किया कि अब किसी युक्ति से आप ही राजा को यह बात समझाएं । बोधिसत्व भी राजा को यह बात समझने का उचित समय तलाशने लगा ।
इसी समय हिमालय पर्वत में एक बहुत ही सुंदर तालाब था । तालाब बहुत स्वच्छ निर्मल और शुद्ध था । वहां एक कछुआ भी रहता था, हर दिन दो हंस वहां पानी पीने को आते थे और रोज वहां आने के कारण कछुए की उनसे दोस्ती हो गई । वह आपस में बातें करने लगे । उनमें से एक हंस ने कहा कि सर्दियों में यहां का पानी जम जाता है, दूर जंगल में एक बहुत अच्छा तालाब है गर्मियों में तुम वहां क्यों नहीं चले जाते हो ? कछुआ बोला मैं उड़ नहीं सकता मैं यहां के अलावा कहां जा सकता हूं । हंस बोला, अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें वहां लेकर जा सकते हैं लेकिन तुम्हें इसके लिए एक शर्त का पालन करना पड़ेगा कि जब तक उस जगह पर पहुंचेंगे,तुम कुछ भी नहीं बोलोगे। कछुए ने उन्हें सोच कर उत्तर देने को कहा ।

अगले दिन कछुआ इस बात पर राजी हो गया । दोनों हंस ने एक लकड़ी का इंतजाम किया । दोनों किनारो को अपनी अपनी चोंच में पकड़ा और बीच में कछुए को मुंह से पकड़वाया और आकाश में उड़ने लगे । आकाश में उड़ते उड़ते एक नगर के ऊपर से गुजरे तो नीचे गुजरते बच्चों ने देखा कि एक कछुआ लकड़ी को मुंह से पकड़े हुए है और हंस दोनों ओर से पकड़ कर उड़ रहे हैं । उन्हें देख कर बच्चे जोर-जोर से चिल्लाने लगे, देखो कछुआ उड़ रहा है ! सुनकर कछुए के मन में विचार आया कि मुझे मेरे दोस्त उड़ा कर ले जा रहे हैं इसमें इन्हें क्या दिक्कत है ? यह चले क्यों नहीं जाते । देखो कछुआ उड़ रहा है , देखो कछुआ उड़ रहा है सुनकर कछुआ परेशान होने लगा और जैसे-जैसे बच्चों का शोर बढ़ता गया वैसे-वैसे कछुए का धैर्य भी जाता रहा ।

अब तक जो कछुआ मन में सोच रहा था वही बात अब कछुआ अपने मुंह से बोलने के लिए आतुर हुआ कि मुझे मेरे दोस्त उड़ा रहे हैं तुम्हें कहां दिक्कत है ? जैसे ही उसने मुंह खोला , लकड़ी उससे छूट गई और वह नीचे पत्थरों पर गिर कर मर गया । सभी लोग वहां इकट्ठे हुए । राजा भी वहां अपने मंत्री बोधिसत्व के साथ पहुंचा । बोधिसत्व को उसने पूछा कि इस कछुए के मरने का क्या कारण है ? महाराज, बोलने में नियंत्रण न होने का नतीजा यही होता है । राजा बोला, कहीं यह बात मुझे तो नहीं कह रहे हो ? इस पर बोधिसत्व बोला जो भी अत्यधिक बोलेगा वह स्वयं ही अपने अंत का कारण बनता है, चाहे वह राजा हो या कोई कछुआ । राजा को भी अपनी गलती महसूस हुई और राजा ने अब कभी हद से ज्यादा नहीं बोलने का निर्णय लिया । आगे का जीवन बोधिसत्व और राजा ने सुख पूर्वक निर्वाह किया और अपना जीवन क्रम पूरा किया ।